रात अधजली रोटी
रात अधजली रोटी
रात अधजली रोटी-सी
पड़ी है ...
मेरे बिस्तर के तकिये पर
सुबह खड़ी है
सदियों से
देह दरवाजे पर
आवाज़ों की कुण्डी खड़खड़ाती ..
आत्मा जो है मेरी
वो धरती की
सुबहों को तोड़कर
उन घरों में बिखेर देती है ..
जहां...
कोई अर्थी उठ रही होती है ..
अर्थ से अर्थी का सफर
खाली लोटे सा
हर जन्म में
कब्र की तरह
कब्रिस्तानों में
उल्टा पड़ा रह जाता है
किसी फकीर के कमण्डल का
धतूरा है यह
धरा ....