राजनीति
राजनीति
नीति पूर्वक राज चलाना,
राजनीति है कहलाता।
नीति विरोध करे जो कुछ,
भी वह अनीति कहलाता।।
चले नीति पर नियम बनाकर,
दृढ आचरण हो जिसका।
प्रजा स्वयं में भेद न माने,
अक्षत राज्य हो उसका।।
जब से प्रजा और शासक,
में भेदभाव गहराया।
राज बदलते रहे किन्तु,
सुख जनमानस ना पाया।।
जाति धर्म भाषा विचार का,
भेदभाव फैलाकर।
कुर्सी पाकर करे भोग सब,
जनता को बिसराकर।।
दुखी गरीब प्रजा हो जितनी,
उतना उनका बोट बढे।
दारू मुर्गा नोट बांटकर,
निज मतलब को सिद्ध करे।।
कुर्सी की खातिर दल बदलें,
वैमनस्व मन मेें उपजाएं।
स्वार्थ के लिए ही पीङित के,
अश्रु पोछने भी जाएं।।
हे शासन के सत्ताधीषो,
बोट न जनता को बस जानो।
शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा पोषण,
बिन निज हित न मानो।।
भारत भाग्य विधाता है यह,
इनसे ही पाओ सम्मान।
सदा दीन के दुख को समझे,
राजनीति है वही महान।।