क़त्ल-ए-मोहब्बत
क़त्ल-ए-मोहब्बत
मल्लिका-ए-हुस्न के सज़दे में हमने सर झुकाया है
राह का पत्थर समझकर हमें इस कदर ठुकराया है
तीर आँखों से चलाकर दिल के पार किया है उसने
क़त्ल-ए-मोहब्बत का इल्ज़ाम हमी पर लगाया है
हम अगर ग़म भी सुनाए उन्हें तो लगता है लतीफ़ा
rgb(0, 0, 0);">ग़म-ए-इश्क़ का फ़साना उसने महफ़िल में सुनाया है
अपनी मोहब्बत की इतनी नुमाईश क्या कम थी?
कि मेरे ग़म को भी उसने सार-ए-आम बिकवाया है
आना मेरे पास जब तेरा खाली दिल रंज से भर जाए
मैंने तो हरदम तेरे ज़ख़्म पर मरहम ही लगाया है।