क़ैद
क़ैद
अज़नबी से हो गए है
अपने ही आप से हम
घर में क़ैद है या
क़ैद में घर है
कुछ समझ नही आता।
ज़िद के बिखरने के
पूरे असरात है
अहम हो या खुशफ़हमी कहिये
जो भी है वो अब दूर हो रही ह
कब सोच कर रखा था
जो स्थिति अब हो रही है
लोकडाऊन हो रखा है
जब पूरा का पूरा देश
अपने ही देश मे मानो
बन गया है कोई विदेश
विदेशी बीमारी महामारी बनकर
अब देसी हो रही है।
हम सबकी मज़बूरियां रहबर
और मुश्किलों से दोस्ती
कुछ आसान हो रही है
मानो 99 प्रतिशत लोग
इस लोकडाऊन को फेवर कर रहे हैं।
कुछ ऐसे भी पढ़े-लिखे ज़ाहिल है
जो सड़कों पर मस्ती कर रहे हैं
वो 1 प्रतिशत लोग ही
100 प्रतिशत बेड़ा ग़र्क़ कर देंगे
न हाथ धोएंगे साबुन से
न सेनिटाइजर इस्तेमाल करेंगे
न मुँह को मास्क या रुमाल दे ढकेंगे
बस यूंही चल निकलेंगे
और कोरोना को
घर-घर संक्रमित करते फिरेंगे।
देश की पुलिस को चाहिए
अपना दोस्त रामलाल(देसी डंडा)
ऐसे जैसो की कर दे
मार-मार कर पीठ लाल
मारे एक और गिने दस
जब तक न वो बोले बस
घर पर बेड पर जब
धराशायी हो कर वो गिर जाएंगे
सच कहता हूं नतमस्तक हो
सदा देशहित की महिमा वो गाएंगे
जय पुलिस करते फिरेंगे
जय देश की वो करेंगे
घर पर टिककर वो रहेंगे
अपने आजू-बाज़ू वाले से
सबसे दूर से यही कहेंगे
घर पर ही रहें
आप संयमित रहें
ताकि सुरक्षित रहें।
