"प्यार कर"(गज़ल)
"प्यार कर"(गज़ल)
जायेगा मिट छोड़ ईर्ष्या-द्वेष नफरत प्यार कर।
चाहता कोई नहीं मिट जाये जग स्वीकार कर।।
लोग कपटी हैं बडे़ जो आग में घी डालते।
सेंकते हैं हाथ अपने कूटनीति धार कर।।
बेचते हथियार सबको भय दिखाकर युद्ध का।
वो सफल ना हों जरा ऐसी जमीं तैयार कर।।
क्या रखा है युद्ध में मिट जाये हस्ती एक दिन।
है गुलों का बाग ये इसको जरा गुलजार कर।।
मिट गयीं है शक्तियां अभिमान करके जो लड़ी ।
प्यार ही है सार जग में प्यार का प्रसार कर।।