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Bhavna Thaker

Classics

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Bhavna Thaker

Classics

प्यार की यादों में

प्यार की यादों में

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शाम की बेला में केसरिया बिखेरते रश्मि रथ के

गमन पर मेरा उदास होना जायज़ है। 

उस पलछिन की यादें दोहराते बेकल से शाम के साये घेर लेते है मुझे

उन बिछड़े लम्हों को कैसे भूलूँ 


हर दिन तुम संग बतियाते बिती और रात कटी आगोश में 

अब आठों पहर इंतज़ार में काटूँ उत्कंठा में सुबह शाम बिते

भाती कहाँ है अब ये शाम पीड़ा में घुलता वक्त बेमन से कटे

नृत्य नहीं, जश्न नहीं ज़िंदगी में कोई रंग ही नहीं,

"दरिया" के साहिल पर हमदोनों के पदचिन्ह पर बिरहा के ढ़ेर सजे।


स्वाति बिंदु सी चाहत सहरा सी तड़पे हर रतियां

फ़िकी यादें तेरी ज़ालिम ज़िंदगी में ज़हर घोले।

लसित दीपक सा मोह मेरा तुमसे मिलने को तरसे मन

करता है बेबाक सी दौड़ी आऊँ तुम्हारी पनाह में 


कैसे आऊँ तुम्हारे वर्तमान को ग्रसित करने,

अतीत जो ठहरी तुम्हारा शायद तुम मुझे भूल भी गए होंगे,

बस कल्पना की उड़ान भर यादों की परवाज़ पर बैठे उम्र काटूँ।


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