प्यार-- एक अनुभूति
प्यार-- एक अनुभूति


कहा जाता है
प्यार किया नहीं जाता
हो जाता है
मुझे भी प्यार हो गया है
किससे
यह मैं नहीं जानती
आप कहते हैं
प्यार करने के लिए
दूसरा चाहिए
चलो मान ली
आपकी बात
यह दूसरा भी मैं ही हूं
प्रथम धर्म तो व्यक्ति का
अपने प्रति ही है
सच्चाई यह है कि
मैं प्यार में सराबोर हूं।
जैसे चश्मे से जल निकलता है
आजकल मेरे अंतर्मन चश्मे से
प्यार बहता है
मैं जैसे तरल पदार्थ बन
नदी का बहाव बन गई हूं
झरने से झर झर झरता
पानी बन गई हूं
मैं भार हीन हो गई हूं
हवा का हल्का सा झोंका
मुझे झकझोर जाता है
अब मैं हवा के साथ उड़ती हूँ।
लोग कहते हैं
मेरे चेहरे पर एक आभा आ गई है
मैं शहद की मिठास
गुलाब की सुगंध
ओस की छूअन
मधुर संगीत की धुन
धरती की गरिमा
जल की तरलता
सूरज की पहली किरण
चांद की धीमी नीली रोशनी
सब मुझ से प्रस्फुटित हो रहें है
क्योंकि मैं प्यार में सराबोर हूं।
ऐसा लगता है मानो
घृणा, क्रोध, मोह,
लोभ, अहंकार
सब नकारात्मक भावनाएं शून्य हो गई हैं
संघर्ष तनाव दबाव सब स्वाहा हो गए हैं
क्योंकि मैं प्यार में सराबोर हूं।
मेरे लिए अब सब बराबर हैं
पशु पक्षी कीट पतंगे वनस्पति
आदमी, औरत और बच्चे
क्योंकि मैं प्यार में सराबोर हूँ।
सीमित से असीमित की ओर अग्रसर हूँ।
क्योंकि मैं प्यार में सराबोर हूँ।