पत्र लिखा मगर भेजा नहीं
पत्र लिखा मगर भेजा नहीं
एक पत्र लिखा
ज़िन्दगी के नाम
कहा ! मैंने उससे
चल कुछ किस्से सुना
सच्ची मोहब्बत के नाम।
फिर उसने कहा
आदम-हऊवा
रोमियो-जलियेट
सोनी-महिवाल
इनका चर्चा पुराने हुए।
तू सुन मुझसे
एक हकिकत
अफसाना आफताब का
चांदनी थी जिसकी मेहबूबा
जिनका रिश्ता था प्रकाश का।
एक दिन रोशनी ने पूछा -
मेरे बिन क्या अस्तित्व है तेरा
वही जो मेहताब का उजले से
दिया का बाती से
दोनों एक दूजे के बिन अधूरे हैं।
इसलिए हमेशा
मोहब्बत करना इबादत की तरह
इश्क दीवांगी के हद तक
कि रूह तक फना हो जाये
ज़िन्दगी की मुक्कमल पहचान बन जाये।
लिखा तो बहुत कुछ
सुख-दुख के साथ
पर भेजा नहीं
क्योंकि रूह का वास्ता है रूह से
हकिकत में कुछ है ही नहीं।
फिर लूँगी जन्म दूसरा
तब इतिहास रचाऊंगी
वादा रहा मेरा
तुमसे मिलने
नया रुप लेकर आऊंगी।