पति का बटुआ
पति का बटुआ
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कैद थे हम खुद की बनाए ''बटुआ '' में
कुछ जज़्बात ने दिल को एहसास दिआ हैं
कदम थे अकेले मंजिल अधूरे राह में
कोई हाथ मिलाने साथ खड़ा हैं।
इत्तेफ़ाक़ से जुड़ा संजोग हैं ये
ना राब्ता ना दिल की परछाई मिले
फिर भी वो लाये एक उम्मीद रौशनी की
जैसे, बोले, हक़ जताओ '' पति के बटुए '' में
ख्वाब ए रंगों का एक बटुआ थमा गए
बेरंग को रंगने की गुज़ारिश में
मन तलाशे बटुआ में तीतलियों को
पर वो उड़ने की हमको पंख दे गए।