पते की जिंदगी।
पते की जिंदगी।
टहनी से,
हरी कोपल फूटती,
बहुत खूबसूरत लगती।
जो भी देखता,
मुग्ध हो जाता,
उसे छूता,
प्यार जताता,
फूल की महबूबा का,
रूप धरती।,
उसे बचाती,
कीड़ों का घर बनती,
कइयों का पेट भरती,
हमारी हवा साफ करती,
उसे गति भी देती,
लेकिन हमेशा,
हंसती रहती।
फिर बड़ा होने पर,
पते का आकार ले लेती,
पेड़ का श्रंगार बनती,
हरियाली फैलाती,
सबसे मिलजुलकर रहती,
पेड़ को पोषण भी देती।
फिर पतझड़ आ जाता,
पते का पेड़ से रिश्ता,
कुछ कम
जोर हो जाता।
तेज हवा चलती,
पता शाख से,
टूट जाता,
और धरती पर,
गिर पड़ता।
फिर उस पर,
पानी पड़ता,
वो गल जाता,
और खाद बन जाता,
धरती को,
असीम ताकत देता।
हैं किसी,
और की जिंदगी ऐसी,
जो पैदा होने से,
आखिर तक,
काम ही काम आता,
और अपने लिए,
कुछ नहीं मांगता।
हे मनुष्य,
अगर जीना,
तो इस,
असहाय जैसा जी।
क्यों बेफिजूल,
मेरी मेरी करता,
और अंत में,
जैसा आया,
वैसा ही चल देता।