पता था
पता था


वो आएगी !
हम असहज थे
बुद्धि काम कर रही थी
नादानी तो हो ही गई थी
अब कोई बहाना भी तो न बचा था
वो आ गई
तीखे तेवर टेढ़े अंदाज
झुंझलाई सी
गरमाई सी
हमारी मूक अबोध सी दृष्टि देखी
अनोखा परिवर्तन हुआ
जो न सोचा था, वो हुआ
कुछ सकुचाई सी चुप रही
कुछ न कहा
मुस्कुराई
फिक से खिलखिला दी
बिना कुछ कहे सुने सब बात कर ली
सिर्फ इतना ही बोली
चल घूमने चलते हैं
मौज मस्ती करते हैं
तुझे लेने आई हूँ
कोई बहाना नही चलेगा
और मेरी बांह पकड़ के चल पड़ी
पतंग की डोर सी खींच कर ले गई।