पता नहीं देश का कैसा हाल है
पता नहीं देश का कैसा हाल है
अखंड भारत सुनकर सुकून मिलता है,
जहां हर व्यक्ति का खून मिलता है,
खून का रंग तो सबका लाल है,
एकता के संकल्प पर दिल में आज भी मलाल है,
कोशिशों के बाद भी समझने को तैयार नहीं है
पता नहीं देश का कैसा हाल है !
इंसान तो है, इंसानियत नहीं है,
सच तो है ,सुनने की हिम्मत नहीं है,
कट्टर कर्मों की रस्सियों से देश
को सीमेट क्यों नहीं रहे हो ?
अपनों से ही धोखा कर,
लड़कर क्यों देश को बांटते जा रहे हो ?
कट्टर धर्म के तीखे खंजर से रस्सियों को
क्यों काटते जा रहे हो !
मंजिल बहुत दूर है,
मेहनत का पसीना बहाकर भी बहुत मजबूर है,
सुरक्षित नहीं है अपने घर में भी
मीलो चलता वह मजदूर है,
हालात देखकर आंखों में नमी भी भरपूर है,
राजनीति में जटिल का कसौटियां हैं,
लानत है राजनीति पर असफलता की
राहों में बिखरी जो चप्पलें और रोटियां है !
आत्मनिर्भर होना है परंतु सहयोगी नहीं बनना,
लाभ क्या ऐसी नीति का जब स्वार्थी ही बनकर रहना है,
विवाद की ऊर्जा में विपक्ष का भी पक्ष है,
वास्तविक कर्म कर्ता मुश्किल से ही कोई शख्स है !
मुद्दों पर काम करके गर्व व्यतीत मत करना,
शिक्षा की ओर योगदान कम है बस इसकी फिक्र करना,
सबको बस महल की चमक मंजूर है,
बुनियाद की ओर तो देखो जरा कितनी कमजोर है !
विकास की आज भी घोंघे सी चाल है
पता नहीं देश का कैसा हाल है !