क्यूं ?
क्यूं ?


हे ! सर्व सृष्टि के सृजनहारे ,
जग जननी जग में बनाई क्यूं ?
नित जुल्म सहे और चुप भी रहे,
तूनें ऐसी ये मूरत बनाई क्यूं ?
कभी ज़मीं में दबाई गयी बेटी,
कभी जिंदा जलाई गई नारी।
कभी अग्नि परीक्षा हुई इसकी,
कभी दांव पे लगाई गई नारी।
यहाँ बेटी होना अपराध है क्या,
व्यूह रचना ऐसी रचाई क्यूं ?
पूरे संसार में सबसे ज़्यादा,
इक तेरी पूजा होती है।
हर गली मुहल्ले में घर तेरा,
फिर बेटी यहाँ क्यूं रोती है।
बेटी है प्रतिमा मन-मन्दिर की,
मन्दिर में मूरत सजाई क्यूं ?
यहाँ सीना तान के फिरते हैं,
वहशी,अपराधी,बलात्कारी।
निर्भया गुड़िया प्रियंका मनीषा,
कई ओर भी हैं,किस्मत मारी।
बे-दर्द और बे-ग़ैरत ये दुनियां,
तूने बेटी के लिए बनाई क्यूं ?
इक सुन ले तूं मेरी अर्ज़ दाता,
धूर्तों का सूपड़ा साफ कर दे।
कन्याऐं हैं देवी-स्वरूप बेटियाँ,
देवियों के संग इन्साफ कर दे।
ये बगिया आदमखोर निकली,
बगिया में कलीयां खिलाई क्यूं ?
--एस.दयाल सिंह--
निर्भया दिल्ली में,गुड़िया हिमाचल मे,प्रियंका हैदराबाद में और मनीषा हाथरस में वहशियाना ज़ुल्मों-सितम का शिकार हुईं। हर रोज़ पता नहीं कितनी औरतें तथा बेटियाँ दरिदों के हाथों जिंदगी गंवा रही है। काश! ये सिलसिला रूक जाए। हर किसी को बेखौफ़ जीने का आनन्द मिले। ईश्वर से ये प्रार्थना है।