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Brijlala Rohan

Tragedy

4  

Brijlala Rohan

Tragedy

परोपकारी पेड़

परोपकारी पेड़

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रहता हूँ हरदम खड़ा - ठड़ा ,

हरदम खुशियों से करता तुझे हरा - भरा।

कभी न मुझे आराम है भाता ,

सदा मैं परहित कर इतराती। 

न माँगू तुमसे दाना और न हीं माँगू पानी    

काम आती तेरी काम मेरी फल- फूल -शाखा -तना - जड़ और टहनी ।

फिर भी तुम मुझे क्यों समझते नहीं दानी ?   

सर्दी- गर्मी और बरसात, झेलना पड़ता मुझे बेरियात।     

एक पैर पर खड़ा रहता हूँ ,सब मुसीबत में अड़ा रहता हूँ।  

फल -फूल से तुम्हें तृप्त कराता, 

प्राणदायिनी आक्सीजन प्रदान कर तेरी जान की परवाह करता। 

मरने पर भी मेरी अस्थियां जलावन के काम आता ,

फिर भी तुझे क्यों मुझपर तनिक भी रहम नहीं आता ,

कुल्हाड़ियों के मार से सहम जाता हूँ ,

मेरे भाई ! क्यों इतनी स्वार्थी हो गए मेरे भाई !   

मैं भी तो उसी माँ की संतान हूँ ,कुछ तो करो तुम रहनुमाई।  

क्यों तुम मुझे मारने पर तुले हो मेरे निर्दयी! बंधु ?        

मेरा अस्तित्व मिटाकर स्वंय तुम भी बन जाओगे पंगु !!!


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