प्रकृति की गोद में
प्रकृति की गोद में
प्रकृति के अंक में लहराती हुई हरियाली देखी,
हंसती और खेलती ऋतु बसंत मतवाली देखी,
इसकी गोद में रहकर गुलशन बांट रहा खुशबू,
चिड़ियों से चहकती, हर खूबसूरत डाली देखी,
उसके अंक में ही समाया है, रात का अंधकार,
दिन के उस उजाले में सूरज की उजयाली देखी,
चांद की चांदनी जो रात को शीतलता बिखेरती,
इसके अंक में ही, दिन की तपती धूप भी देखी,
प्रकृति के अंक में, संगीत के सारे रंग बिखरे हैं,
प्रकृति के रंगों की हम ना कर सकते अनदेखी,
अपने निज स्वार्थ के लिए मानव ने इसे उजाड़ा,
रौद्र रूप संग इसकी हम सबने उदासी भी देखी,
हरियाली की चादर ओढ़ती आंखों को सुख देती,
कभी उसके अंक से सूखी धरा धूल उड़ती देखी,
हरी हरी खेतों में बरसती जब भी रिमझिम बूंदें,
खुशी खुशी अपने अंक में समाहित करती देखी,
झील, नदियाँ, पेड़ और पर्वत सबको स्थान दिया,
सबको जीवन देती हमने प्रकृति की मेहनत देखी,
प्रकृति के अंक में समाई हुई है, ये सृष्टि सम्पूर्ण,
इसके प्रति भी हम सबकी क्या जिम्मेदारी देखी,
सुंदर रूप और विस्तृत फैला है आंचल इसका,
नीला वो आकाश, पर्वत से ऊंची किस्मत देखी,
माँ की भांति अपने अंक में समेटकर देती प्यार,
रखती ख्याल सबका, देती है ममता और दुलार,
बहते हुए झरनों से, कई बार आवाज लगाई है,
कहीं शीतल छांव तो कहीं सागर सी गहराई है।