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Kusum Joshi

Others

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प्रकृति आजकल खुश है

प्रकृति आजकल खुश है

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प्रकृति आजकल खुश है,

इसलिए नहीं कि मानव दुख में है,

पर इसलिए कि,

वो अपनी हद में है।


मानव की उत्कृष्टता का गुमान,

हर दिन टूट बिखर रहा है,

दम्भ शक्तिमान होने का,

एक छोटा वायरस हर रहा है।


मानव घर के अंदर है,

और जीव सभी उत्साहित हैं,

कोयल गाती गीत नए,

नदियां स्वच्छ प्रवाहित हैं।


शेर, तेंदुए, भालू, हाथी,

सड़कों पर निर्भय घूम रहे,

मानव व्याकुल व्यग्र हो रहा,

लता वृक्ष सब झूम रहे।


हवा भी कितनी स्वच्छ हुई,

अम्बर भी नीला दिखता है,

कितने वर्षों के बाद रात में,

नभ तारों से सजता है।


वसुधा आजकल जीवंत है,

इसलिए नहीं कि मानव मर रहा है,

पर इसलिए कि,

वो अपना अस्तित्व समझ रहा है।


समझ रहा है मानव,

उसका ज्ञान अभी भी सीमित है,

वह एक छोटा सा कण है,

ब्रह्मांड अनन्त असीमित है।


रुका हुआ है जीवन अब,

इसमें ना कोई भागम भाग है,

अपनेपन के एहसास नए हैं,

नए नए अनुराग हैं।


रिश्तों की सीमा मर्यादा,

मानव हर दिन सीख रहा है,

बहुत समय के बाद मकान,

घर सरीखा लग रहा है।


रिश्तों को आयाम नए,

कितने वर्षों के बाद मिले,

एक ही छत के नीचे,

पुनः प्रेम सौहार्द्र पले।


मन आजकल मेरा भी खुश है,

इसलिए नहीं कि मानव भूख से

बिखर रहा है,

पर इसलिए कि,

हर हाथ सहायता में उठ रहा है।।



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