परिवार
परिवार
एक छत के नीचे आज परिवार रह रहें है।
एक- दूसरे से अजनबी जैसे अनजान रह रहे है।
अपने अधिकारों के लिए है तो है जागरूक।
फर्ज के नाम पर बस खामोश हो रहे हैं।
एक छत के नीचे आज परिवार रह रहें है।
टूटे पहले संयुक्त परिवार से,
फिर अब एक -दूसरे से टूट रहे हैं।
जितना ज्यादा जानकर बना।
उतना ही इंसानियत से दूर रह रहे हैं।
एक छत के नीचे आज परिवार रह रहें है।
एक -दूसरे के साथ बस औपचारिकताएं ही निभा रहे हैं।
जीवन के सुनहरी पलों को यूं ही गंवा रहे हैं।
ना खुद को समझ सकें।
न परिवार को समझ दे सके हैं।