परिंदा
परिंदा
1 min
341
भूल जाना उन बातों को
कह दी थी जो गाहे-बगाहे
कुछ अनसुलझी मुलाकातों में
बुने थे जो ख्वाब कभी मैंने
उधड़ गए वो बिछड़ते ही हमारे
अब नहीं अर्थ कोई उन बातों का
नहीं कोई ठिकाना मुलाकात का
बस अब सिर्फ एक ही तमन्ना
भूल जाना उन बातों को
सुन ली थी जो कभी तुमने
मत सुलझाना मेरी बातों को
उलझ जाएगी जिंदगी हमारी
मेरी नादानियां, तुम्हारी मासूमियत
कब उड़ा ले गया वक़्त का परिंदा
न तुम्हें पता चला न मुझे लगी खबर
बस अब तो सिर्फ कहना है एक बार
भूल जाना उन बातों को
कह दी थी जो गाहे-बगाहे
कुछ अनसुलझी मुलाकातों में।