प्रीत दीवानी
प्रीत दीवानी
प्यार भरे सुन ले मेरे
प्रेम गीत ओ कान्हा
बोले मीरा छूटे न जरा
दीवानी प्रीत ओ कान्हा
तोहरी मन मोही मूरत
जबसे देखन नैन मेरे
तब से शाम का नाम पुकारे
बीतन जावे दिन रैन मेरे
तोहरी सुहावनी सुरत
नैन में भर हृदय में बसाऊँ
प्रेम से महके गीत रचे जो
सुमन सुहाने तुझ पे बरसाऊँ
मनमा बाजे शोर किजै
शाम नाम का संगीत ओ कान्हा
बोले मीरा छूटे न जरा
दीवानी प्रीत ओ कान्हा
क्या बिगड़ा जावे किसी का
जो सब बन बैठन बैरी
दुख ऐसन भरा नैन में
जैसन घटा घनेरी
कहे प्रीत को यह पाप
जो तोहरी सीख घनश्याम
पथ प्रेम के जो पग पड़ा
मैं तो हुई रे बदनाम
दुनिया काहे सतावे मोहे
तू मोरी मनमीत ओ कान्हा
बोले मीरा छूटे न जरा
दीवानी प्रीत ओ कान्हा
अधर पे नाम हो तेरा
यह तो अधिकार है मेरा
मैं झूम झूम के गाऊँ तोहे
तू ही संसार है मेरा
मन मा आस लिए झूठी
नैन ताके राह तेरी
बस एक बारी आजा सांवरिया
तरसी जावे निगाह मेरी
याद पिया की उलझन जिया की
यह प्यार की रीत ओ कान्हा
बोले मीरा छूटे न जरा
दीवानी प्रीत ओ कान्हा
प्रेम की ज्वाला में तप के
निखरता अंगार हो जाऊँ
माथे का मोरपंख बने
मैं तोहरा श्रृंगार हो जाऊँ
न हो पाई संगिनी तो
मैं तेरा सार हो जाऊँ
जो रुक्ष धरा को भीगो दे
वह प्रेम की धार हो जाऊँ
स्नेह भरा हृदय यह मेरा
मोरी जीत ओ कान्हा
बोले मीरा छूटे न जरा
दीवानी प्रीत ओ कान्हा।