परिधान बदलने से
परिधान बदलने से
परिधान
बदलने से
इंसान तो नहीं बदलता
उसका दिल तो नहीं बदलता
उसकी आत्मा का
स्वरूप तो नहीं बदलता
इसी इमारत में
रहता था वह
इसी दुनिया में
गुजर बसर
करता था वह
इन्हीं शहर की गलियों से होकर
गुजरता था वह
इन्हीं सड़कों पर
बिछे रास्तों से
अपने घर को
लौटता था वह
वह नहीं तो
क्या यह खाली इमारत
यह सूना घर
यह परेशां दिल
उसकी यादों की गूंज से नहीं
भरा
दिखता है वह तो मुझे
जर्रे जर्रे में
तस्वीरों में
दीवारों में
उसकी डायरी के बिखरे
हर पन्नों में
कोई मुझसे
कभी यह न कहना कि
चला गया है वह
मुझे तो हर पल
हर श्वास
हर मौसम
मेरे दिल के
बेहद करीब से
छू कर गुजरता है वह।