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Rajesh Raghuwanshi

Romance

4  

Rajesh Raghuwanshi

Romance

प्रेम

प्रेम

1 min
198


मेरी हर खुशी के लिए वह

मंदिरों में मन्नतों के धागे बांध आती है।


नजर ना लगे मेरी खुशियों को कभी

बन काला टीका नजर उतार जाती है।


कुछ कहे बिना ही ना जाने कब

वह चुपचाप मेरे हिस्से के आँसुओं को 

अपनी पलकों में समेट ले जाती है।


गर लगे प्यास मुझे तो वह 

मीठे पानी का सोता बन जाती है।


हर तकलीफ में मेरी वह कभी 

दवा तो कभी दुआ बन जाती है।


गर याद आए उसकी तो

हिचकी बन पास पहुँच जाती है।


कड़ी धूप में परछाई तो 

छाँव में ठंडी हवा बन मन को सुकूँ दे जाती है।


आँखें बंद करता हूँ तो स्वप्न

और आँख खुलते ही सहर बन जाती है।


कोशिश करुँ कभी गर भूलने की उसे

तो बन धड़कन दिल में समा जाती है।


मुश्किल भरी राहों में भी हाथों को थामे वह

कभी चाहत तो कभी मेरा मुकद्दर बन जाती है।


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