प्रेम
प्रेम
जाओ !तुम्हारे सभी दावे झूठे निकले
तुम्हारी करुणा बाहरी थी।
तुम्हारा अट्ठाहस बनावटी था
तुम्हारा समर्पण वैचारिक था
तुम्हारी आस्था भी क्षणिक थी।
तुम्हारे सभी प्रतिमान धूमिल हैं
तुम्हारी अवस्थाएँ दयनीय हैं
तुम कृपापात्र हो जाना चाहोगे
संभवत: न लौट पाना चाहोगे
परंतु यह सत्य तुम्हारा है कदाचित्
तुम ही देख सकते हो इसे मैं नहीं।
मेरे लिए तुम अनिर्वचनीय रहे
तुम्हारी निश्छलता जीवंत रही
तुम्हारे अट्ठाहस भी सजीव रहे।
तुम चिरंजीव हो सदैव से ही
स्वयं को अपराधी मत कहो।
तुम न्याय हो अंतस्तल से उजले
तुम्हारा और मेरा साथ होना
केवल होना ही तो नही है न
पावन हो तुम और मैं पवित्र।
पृथक हो ही नही सकते कदापि
क्योंकि तुम एक गूढ रहस्य हो
और मैं प्रतीक्षित जिज्ञासा।
तुम्हारा उदय और अवसान
मुझ ही पर संभव रहा है सदा।।
विलग "तुम हो नही सकते"