प्रेम की अनूठी परिभाषा
प्रेम की अनूठी परिभाषा
प्यार! कितना खूबसूरत है यह शब्द।
जो ज़िन्दगी को कर देता है स्तब्ध।
बड़े अरसों बाद अर्थ से तार्रुफ हुआ!
असल प्रेम तो माँ की ममता में था बिखरा हुआ।
असल प्रेम तो बाबुल की आँखों में था सजा हुआ।
असल प्रेम तो साजन के सानिध्य में था बसा हुआ।
असल प्रेम तो बच्चों की मासूमियत में था भरा हुआ।
असल प्रेम तो धरती का बादलों में था उमड़ा हुआ।
असल प्रेम तो सावन का बहार में था सँवरा हुआ।
असल प्रेम तो मीरा का कृष्ण में था निखरा हुआ।
असल प्रेम तो तुलसीदास जी का राम में था निःसंदेह हुआ।
आखिर किसे कहेंगे प्रथम प्रेम व किसे बतलाएँगे सच्चा?
साँची बात एक ही मैं जानूं जहाँ मन रम जाए वही समूचा।
प्यार की परिभाषा है कहती त्याग समर्पण जरूरी।
दिल में जो बस जाए एक छवि वह ही अनुपम अनूठी।
यही सत्य व बात पते की प्रेम अनवरत होता।
उसमें छल व कपट दंभ का क्षणिक ना भाव भी होता।
प्रेम का दूजा नाम है ईश्वर उसी में मन को लगाओ।
मोक्ष मार्ग पर जाना हो तो प्रथम प्रेम उससे कर जाओ।
वही है सबकी अंतिम सीढ़ी खुद को वहाँ पहुँचाओ।
तभी बनेगी बिगड़ी सबकी बात अमल में लाओ।।