प्रदूषण
प्रदूषण


बीत गया इस वर्ष का,दीपों का त्यौहार।
वायु प्रदूषण बढ़ रहा ,जन मानस बीमार ।।
दोष पराली पर लगे ,कारण सँग कुछ और।
जड़ तक पहुँचे ही नहीं ,कैसे हो उपचार ।।
बिन मानक क्यों चल रहे ,ढाबे अरु उद्योग ।
सँख्या वाहन की बढ़ी ,इस पर करो विचार।।
कचरे के पहाड़ खड़े ,सुलगे उसमें आग कागज पर बनते नियम ,सरकारें लाचार ।।
विद्यालय बँद हो गये ,लगा आपातकाल ।
दूषित वातावरण में , देश के कर्णधार ।।
व्यथा यही प्रतिवर्ष की ,मनुज हुआ बेहाल।
सुधरे जब पर्यावरण ,तब सुखमय संसार ।।।