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Hem Raj

Others

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Hem Raj

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प्रदूषण

प्रदूषण

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वह गरजता बादल नभ में, मानो जग से यह बोल रहा है।

क्यों फैला कर प्रदूषण पगले, नाहक आफत मोल रहा है?


गंदला कर पानी, माटी , हवा को, ध्वनि में जहर घोल रहा है।

क्यों अपने लिए बिना वजह के, द्वार नरक के खोल रहा है?


अन्तर मन के पावनपन को, क्यों भ्रष्टाचारण में रोल रहा है?

हर रिश्ते नातों को दिन प्रतिदिन, स्वार्थ तुला में तोल रहा है।


आषाढ़ श्रावण की बरसात भादो में, तेजाबी मेघ बरसाएगी।

फिर न कहना ये क्या हुआ? वह सकल धारा को जलाएगी।


धुआँ ही धुआँ आसमान में, कारखाने, मोटर गाड़ी फैलाएगी।

फिर तो तेजाबी वर्षा कुदरत, नित दिन धारा पर करवाएगी।


दूषित मृदा जब अपनी कोख से, उपयोगी अन्न न उपजाएगी।

 क्या खाएगी तब जग की जनता, या भूखे ही मर जाएगी?



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