प्रभु की कृपा।
प्रभु की कृपा।
कौन समझ सका, प्रभु की कृपा को।
जो नित- नित करता सब की भलाई।।
मुझ में भरी अनेकों बुराई, भला बुरा कुछ समझ ना पाई।
करता रहा जो मन ने चाहा, कदम- कदम पर ठोकर है खाई।।
प्रभु ने प्रकाशित किया मन मोरा, सूझ पड़ा तब मार्ग सुखदाई ।
पापों तले दबा जाता था, प्रभु ने कर दी सबकी धुलाई ।।
पता नहीं किस-किस रूप में आए, ना जाने कितनी पीड़ा उठाई।
फिर भी भला करने के खातिर, गुरु- दरबार में दिया पहुँचाई।।
सुन अद्भुत समरथ गुरु वाणी, अंतर्मन की हुई सफाई।
इस दीन- हीन "नीरज" की गुरु ने, बिन माँगे सब बिगड़ी बनाई।।