पलायन
पलायन
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जून सात काफी कुछ अनलॉक हुआ ,
फिर से पृथ्वी घूमी अपनी धुरा ,
आखिर कब तक हम कमरों में बंद रहेंगे ?
एक ना एक दिन तो मुकाबला करेंगे |
मास्क , दो गज दूरी और हाथ धोना ,
यदि सबको याद रहेगा .....
तो कोरोना का बाप भी ,
हम पर हमला नहीं करेगा |
शाम को डियर डायरी ,
मैं भी आज बाज़ार गई ,
उन रेड़ी - पटरी वालों से वो सब खरीदा ,
ज़िन्हे मायूस बैठा देख सबका दिल पसीजा |
रात बिस्तर पर बेचैनी ने खूब तड़पाया ,
जब बेरोजगार हुए श्रमिकों का चेहरा याद आया ,
उनकी वापसी ने फिर शहरों में डाली जान ,
उनके पलायन से हुआ देश को भारी नुक़सान ||