पिंजरा
पिंजरा
एक चिड़िया बंद है पिंजरे मे
उड़ाना चाहती है
पर उड़ नही पाती
सोचती रेहती है की कब वोह आजाद होगी इस पिंजरे से
आँखों मे अनेक सपने सजाए हुए
टुकुर टुकुर देखती पिंजरे के बाहर
कैसे लोग अपनो के साथ बाहर जाया करते है
मगर वोह रेहती इस पिंजरे मे
उसके अपने ही उसके सपनो को नही समजते
रोया करती थी रातो मे
कोई नही था उसका जो उसके सपनो को समझ पाए
अकेले रोया करती थी
सोचा करती थी कब आज़द होगी
उसके अपने उसे ताने मारते
उसको गलत टेहराते
उसके जज़्बातो को नही समजते
कहने को तोह उसका परिवार
मगर कोइ नही ऐसा
जो समझे उसके सपनो को
उम्मीद थी बस कब खुलेगा यह पिंजरा
एक दिन हुआ चमत्कार
खुल गया पिंजरे का द्वार
उड़ चली चिड़िया
अपने सपनो की और
फिर कभी नही देखा
मुड़कर उसने उस पिंजरे की ओर।