फर्रुखाबाद( मेरा शहर)
फर्रुखाबाद( मेरा शहर)
बस के एक लम्बे हॉर्न से मैं जगा,
थकावट से चूर मैं उठा,
हर मुसाफ़िर एक अजीब जल्दी में था,
किसी का बस्ता गुम हो गया था तो किसी का स्टेशन पीछे छूट गया था,
कंडक्टर ने कहा फरुखाबाद वाले उतरो,
अपना सामान और परिजन ले जाना ना भूलो,
धूप की तपिश में भी ये शहर रफ़्तार में था,
करीब आठ बजे ये सफर मैने आरंभ किया था,
यहां की धरा में अध्यात्म था,
बड़ा अद्भुत रामेश्वर नाथ महादेव और पांडवेश्वर महादेव का श्रृंगार था,
दिन शाम की ओर बढ़ रहा था,
हर बाज़ार और चौराहा पपड़ियों से महक उठा था,
दूसरी ओर गर्म जलेबियों की पुकार मेरा दिल ठुकरा ना सका था,
मैं इस शहर के हर स्वाद हर एहसास हर जज़्बात को पन्नों की दहलीज पर उतारना चाहता था,
काफी चटपटा लगा ये शहर,
साहित्य के एहसास का साक्षी भी था ये शहर,
लेखिका महादेवी वर्मा जी और उनका साहित्य इस शहर का हिस्सा रहा,
कुछ दूरी पर मैंने बाज़ार की बढ़ती भीड़ को देखा,
मैं भी सबके पीछे चल दिया,
एक बुज़ुर्ग ने मेरे सर पर अपना हाथ फेरा,
नए हो इस शहर में बबुआ मुझसे बस इतना पूछा,
भीड़ का सैलाब एक मंच के साहिल की ओर रुक गया,
मैं भी एक कोने में जा कर बैठ गया,
मैंने सूरज को जल में समाहित होते देखा,
अपनी उलझनों और निराशा को ढलती शाम की तरह डूबते देखा,
पांचाल घाट के एक ओर मैं बैठा था,
दूसरी ओर रात के अंधेरे में ये घाट करुणा और शीतलता का संगम बन बैठा था,
यहां के सक्रिय युवा को सब अध्यात्म और सनातन धर्म के सिपाही कहा करते है,
इस शहर को सब महादेव की नगरी कहा करते है,
ये शहर नई कलम लिए कुछ नया लिखने निकला है,
तकनीकी और शिक्षा के नए परिवेश को रचने चला है,
इस शहर की गलियों में शायरों की शायरी आज भी गूंजती है,
इतिहास के पन्नों की सरसराहट आज भी एक गीत बन राग में पिरोई मिलती है,
इस घाट से मैंने अपना सब कुछ बाट लिया,
अपनी डायरी के पन्नों में इस बाज़ार की रौनक और आस्था को लिखने बैठ गया,
अपने हाथों में मैंने घाट की मिट्टी को लिया और सर से लगा लिया,
ऐसा लगा मैं इस शहर का ही हो गया।