फर्ज निभाती है
फर्ज निभाती है


भूख मिटाने को बच्चों की
खुद भूखी रह जाती है
सुख की नींद सुलाने बच्चों को
खुद कांटो पर रात बिताती है
वो मां है, जो बिना स्वार्थ
अपना फर्ज निभाती है।
अंगुली पकड़कर बच्चों की
चलना मां सिखाती है
भले-बुरे का भेद बता कर
जीवन राह दिखाती है
वो मां है, जो बिना स्वार्थ
अपना फर्ज निभाती है।
धूल सने बेटे को भी मां
चंदा-सूरज बतलाती है
लाख खता भले कर ले बेटा
मां सीने से उसे लगाती है
वो मां है, जो बिना स्वार्थ
अपना फर्ज निभाती है।
घिर आते जब दुःख के बादल
सुख की बूंदें बरसाती है
घर- आंगन में सदा
ममता के मोती लुटाती है।
बच्चों को बनाने को लायक
सारा जीवन कष्ट उठाती है
वो मां है, जो बिना स्वार्थ
अपना फर्ज निभाती है।
जीते जी मां, कर्ज
ममता का चुकाती है
मरते-मरते भी दुआ
जीने की दे जाती है।