पहलवानी (कहानी इंसाफ की)
पहलवानी (कहानी इंसाफ की)
बड़ी मुश्किल से मनाया था बापू को,
पहलवानी ही सब है मेरे लिए झट कह दिया बापू को,
एक लड़ाई खुद से लड़ी थी,
एक लड़ाई अपनों से लड़नी पड़ी थी,
सबने कहा क्या है पहलवानी में,
मर्दों का खेल है ये तुम रहो रसोई में,
मेरा जुनून था खिलाड़ी बनना,
भारत के लिए सोना जीतना,
बस फिर खुद की सुनी,
कुश्ती की पहली पारी खेली,
जीत के पहली मंजिल सपनो की उड़ान थी भरी,
फिर सफ़र चलता चला,
परिवार ने भी गर्व से मुझे अपना राजा बेटा कहा,
राष्ट्रीय,अंतरराष्ट्रीय खेली,
और भारत की बेटी सोना लेके घर लौटी,
खूब सम्मान मिला,
देश भर से था प्यार मिला,
दावत और न्यौते मिले,
सबसे खूब दुलार मिला,
पर खिलाड़ियों की एक जिंदगी और थी,
हम खिलाड़ियों की कहानी थोड़ी अधूरी थी,
घुटन का एहसास वो,
यौन शोषण, शारीरिक उत्पीड़न में जीना वो रोज़,
आवाज़ उठाई जो तो सब ने चुप करवा दिया,
कहा है वो लोग जिन्होंने प्यार से भारत की बेटी कहा था,
कोई न आया साथ,
हम खिलाड़ी खड़े है अकेले और बस मांगे इंसाफ,
मौन क्यों है शासन,
क्यों देश का नाम ऊंचा करने वाली बेटी के लिए चुप है प्रशासन,
हम खिलाड़ी है,
पहलवानी या कुश्ती या कबड्डी आदि हमने मेहनत में कमी न की,
देश के लिए कुछ कर जाने की मशान ना बुझने दी,
आज वो देशवासी नहीं साथ,
आज हम अकेले हैं हम खिलाड़ी ही है बस साथ।