फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं
फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं

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सब कुछ तो है,
पास मेरे और है
थोड़ी सी आस भी,
फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं !
सब कुछ तो है,
पास मेरे एक
छोटी सी ज़िन्दगी,
पाषाण सा तन
और ये शिला सा,
स्थिर मन भी तो है
फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं !
सब कुछ तो है,
पास मेरे और
हाँ रुकी-रुकी सी,
सांस भी तो है
फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं !
सब कुछ तो है,
पास मेरे बस
थोड़ी सी ख़ुशी,
थोड़ा सा सुकून
और थोड़ा सा,
चैन ही तो नहीं है
फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं !