पहचानने से ही इंकार कर दिया..!
पहचानने से ही इंकार कर दिया..!




दिलों की
मोहब्बत ने
ये कैसा
अंगार कर दिया,
नफ़रतों का ही
सब
संसार
कर दिया,
बड़े
अच्छे-भले थे
हम
अपनी
दुनिया में,
उसकी झूठी
मोहब्बत ने ही
बेकार
कर दिया,
तन्हा हो गये थे,
उसी
दिन से
महफ़िलो में,
जबसे उसने मुझे
पहचानने से ही
इंकार
कर दिया...!
कोई
हमसे पूछे,
कि टूटकर
जीने का
मज़ा
क्या
होता है,
मोहब्बत में
तड़पने का
सज़ा
क्या
होता है,
हर किसी को
उसका
मेहबूब
नहीं मिलता,
फ़िर ये आसमान में
जोड़ियाँ
बनाने वाला
ख़ुदा
क्या
होता है,
हर बंदीसों से
उसने
मुझे
आज़ाद ही
कर
दिया,
तनहा
हो गये थे,
उसी दिन से
महफ़िलों
में,
जबसे
उसने मुझे
पहचानने
से ही
इंकार
कर दिया...!