पहचान
पहचान
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मेरी अपनी पहचान भी बेनाम है क्या
मेरी तरह तू भी नाकाम है क्या
तेरे पीछे नहीं आता ये मुकद्दर खीच लाती है
अब तू ही बता इसमें मेरा इल्जाम है क्या
सफर नहीं आसान नुकसान होने को है इश्क़ में
ये एक तरफ मोहब्बत मेरे वफ़ा का अंजाम है क्या
इस जहान में कोई नहीं मेरा ये जान लिया
क्या आज भी मेरी शनाख़्त गुमनाम है क्या
इज़हार है मेरे लफ्जो में मगर तुम सुन कहा पाते हो
मेरी आवाज़ मुरझाए हुए फूल से बेजान है क्या
तश्बीर बट रहे शहर में कि
हम दिल - ए - नाकाम लिए फिरते हैं
बरसों बाद भी हम बदनाम है क्या।