पहचान
पहचान
सांचे में ढल कर
सांचा ही तोड़ डाला।
मिलते मिलाते रहे
आज बीच राह में ही छोड़ डाला
किस नफरत का साया है तू।
किन विचारों में बह सा गया है तू
पल में पल पल का
हर पल का हिसाब कर डाला।
मकाम पर पहुंचकर
हमसे ही मुंह मोड़ डाला।
आहें भरते रहे
अपनी जुबान पर तुझे लाते रहे।
अपना चैन खो कर
तेरा चैन बनाते रहे।
पर तूने तो अपना
रास्ता ही बदल डाला।
दूर जाकर
हम सबको भुला डाला।
हमारी आरजू,
हमारा जुनून,
हमारा गुरूर था तू।
आज सबको पीछे छोड़
अपनी निशानी ही पोंछ आया
खुद की पहचान ही मिटा आया।