पैग़ाम
पैग़ाम
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कुछ इस तरह
ये पैग़ाम आया
खुशी के खोज में
ये कैसा आराम आया।
दिल थम सा गया है
दिमाग तो अभी भी चंचल है
हर एक पल गुजरने के साथ
शरीर कांप सा जा रहा है।
मायूस है हम
मत पूछो क्यों
ये समय ही वेसा है
नजाने कब तक बितेगा यूं।
आज रात गहरी लग रही है
दिन खामोशी मे बन्दी है
कुछ नई किरन की उम्मीद में
ये आंखों के खोज तरस गए हैं।
कुछ इस तरह
ऐसा एक क्या पैग़ाम आया !