पावन बगिया
पावन बगिया


गर "कृपा" की ना होती इस गरीब पर,
तो तुम्हारी मेहरबानी का कर्जदार ही ना होता।
गर बुलाया ना होता तुमने अपने दर पर,
तो तेरे दर पर आने के काबिल ही ना होता।
गर प्रेम का पाठ पढ़ाया ना होता,
तो तेरे प्रेम -पात्र के लायक ना ही होता।
गर जिंदगी का असली मकसद ना होता,
तो किसी को आप का आसरा ही ना होता।
गर तेरे दर्शन की चाहत ना होती,
तो आज मेरे जीवन का कोई ठिकाना हो ना होता।
गर तुम जमाने के दाता ना होते ,
तो आज इस गरीब के पास कुछ भी ना होता।
गर "रामाश्रम रूपी पावन बगिया" ना होती,
तो "नीरज" का कोई भी वज़ूद ही ना होता।