पाषाणी
पाषाणी
मैं भी बन जाती हूं पाषाणी
अहिल्या की तरह
करती हूं बेसब्री से इंतजार
अपने राम का .....
साथ में पाषाण हो जाती हैं
मेरी संवेदनायें भी
मन में उठने वाला भाव प्रत्येक
छुपती हुई वेदनायें भी
रोने चीखने को मन करता है
दिल का दर्द जब नहीं संभलता है
बना देती हूँ धड़कनों को पाषाणी
अहिल्या की तरह
और करती हूं बेसब्री से इंतजार
अपने राम का......
आंखें बरसने को बेताब होती हैं
टूटे हुये ख्वाबों को जब संजोती हैं
बना देती हूं इन्हें भी पाषाणी
उस अहिल्या की तरह
करती हूं बेसब्री से इंतजार
अपने राम का.. ...
आओगे जरूर एक दिन तुम
चलते हुये किसी वन में यहीं
और छू लोगे मेरे मन को
और बन जाऊंगी मैं फिर वही
हंसती ,मुस्कराती ,खिलखिलाती
सपने सजाती, जो मैं थी......