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Pradeep Sahare

Abstract

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Pradeep Sahare

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पानी

पानी

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पानी की है,

अनगिन कहानी।

कुछ जानी,कुछ अनजानी।

पानी के उपर है गानी,

"पानी रे पानी,

तेरा रंग कैसा।

जिसमें मिलावों,

तू बने वैसा।"


अब बतलाता मैं,

"पानी "की कहानी।

जो हैं,मेरी जुबानी। 

नयनों से आँसु बनकर,

जो बहता "पानी"।

कह देता है, 

सुख-दुःख की कहानी।


लञ्जतदार देखकर खाना।

मुंह में आता है "पानी"।

लग जाएं तीखा तो,

आँख में आता "पानी"।

धन,कुबेरों के घर,

देवी लक्ष्मी भरती "पानी"।

हालात बेकाबू हो जाए तो,

शिर के उपर बहता ''पानी"၊


कोई करें हमसे होशियारी,

फालतू की मारता हो बढाई।

कहते हम उसे,

ज्यादा ना फुदक मेरे,

दिलबर जानी।


मैं भी पिया हूं,

बारह घाट का "पानी"

जब परिस्थिती कुछ,

>

बनती विपरीत,

नहीं हारता हिंम्मत,

यह खुदा का बंदा।


कहता है,

"मुश्किले रहेंगी,

जहाँ की तहाँ,

जहाँ ठोकर मारुंगा,

"पानी" निकालुंगा वहाँ "

दुश्मन संग लङाई में,


विजयीता पिलाए,

दुश्मन को "पानी"

नवयौवना की नई कहानी,

सरका जो आँचल कंधे से।

लज्जा से हो जाती "पानी"।

देखकर उसको,

हमारा दिल हो जाता "पानी"।

विवाह के पवित्र बंधन में,

पिता करें, अपनी लाडली को,

ग्रहन "पानी"।

माँ, बाप के चरण धोकर,

पिते हम अमृतमय "पानी"

अंतिम समय आवें तो,

मांगे लड़के को अंतिम ''पानी"।


जब वो स्वर्ग सिधार जाएं तो,

पितर को करें अर्पण "पानी"

बारीश जब आती,

नदीयां,नाले भरकर,

बहता "पानी"

सूखा पड़ जाएं तो,

सब करते,

पानी पानी...।


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