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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract

4.0  

मानव सिंह राणा 'सुओम'

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पानी की प्यास

पानी की प्यास

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पानी की प्यास अब बुझेगी कैसे।

समंदर की जवानी अब झुकेगी कैसे


कल तू बैठी हो बेवफा बन सामने।

तो दिल की आग अब बुझेगी कैसे।


तू और मैं, मैं और तू ओ मेरे सनम।

सच बता पहेली अब बूझेगी कैसे।


तू ख़ास ही है यह अहसास है हमें।

तुझसे मिलने की प्यास बुझेगी कैसे।


कलरव करती नदियों के पास यूँ ही

एक नई आवाज़ अब गूंजेगी कैसे।


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