पाखंडी
पाखंडी
मिस्किन को दाना नहीं
आमिर जशन मानते है,
भूखा बस तू ही सोए
पत्थर भी भोग लगाते हैं।
बसर करने तुजे छत नहीं
कुछ वाडो में रौफ जमाते हैं,
सिरात पे तू ही भटके
कुक्कुर भी पाले जाते हैं।
बदनाम यहाँ रोटी के चोर
गद्दार खुले गुर्राते हैं,
मौत बस तेरे माथे
भगोड़े रहम को पाते हैं।
बापू का कोई मोल नहीं
ईमान से सब कतराते हैं,
जिस गाँधी की तू बात करे
नोटों में नापे जाते हैं।
सिने पे तिरंगा जो लिपटे
कोहरे तुज पे बरसाते हैं,
वतन का इनको ज़स्बा नहीं
तहज़ीब का शौक मनाते हैं।
ईश्वर को अल्लाह बोले तो
पाखंडी तुजको बताते हैं,
वो फ़ोकट तेरी भक्ति करे
जो राम-रहीम जलाते हैं।