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Shravani Balasaheb Sul

Inspirational

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Shravani Balasaheb Sul

Inspirational

नश्वर

नश्वर

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चार दीवारों से घिरी हुई

सिसक रही थी रातों में

बहती रही उस नदी में

जो खुद बह गई जज्बातों में


जब पुराने किसी जख्म के

छाले फिर से छील गए

सवाल तो कोई नहीं था

मगर जवाब कई मिल गए


कि दिल की चोट कोई चाव से चख ले

वह तो ज़िंदा होने का निशान है

हमें सता के जो खुद कैद हैं दीवारों में

यह जिंदगी वह मकान हैं


खुल के जहां झूम सकूँ

चंचल मन वह आंगन हैं

मगर वह बाड़ हैं दिमाग

जिसके अंदर ही अपना प्रांगण हैं


जिसको पार करके जाना पड़े

चुनौती वह सीढ़ी हैं

तभी तो जानोगे ज़िंदगी को

बात यह सीधी है


हर कदम का लिहाज करे

मर्यादा वह चौखट हैं

वरना छोटी सी बात पे छेड़ती हैं

यह जिंदगी बड़ी नटखट हैं


जो खुला है तो बाहरी दुनिया

बंद हैं तो अंदर ही देखे बार बार हैं

जहां हर वक्त दस्तक दे कोई सपना

आंख वह द्वार है


हर एक कमरा यहां का

जिंदगी का हर एक दौर हैं

जो बन के हवा समाए इन में

अनुभव है न कुछ और हैं


आसमान के तारे 

और उड़ते हुए परिंदे

जो देखे इनके सपने

वह खिड़कियां है उम्मीदें


छूने को जमी से आसमान

बस एक उड़ान भरनी होती हैं

जो यूं ही हवा में उड़ने से बचाए

कृतज्ञता वह छत होती हैं


बरकत में जो जुड़े जमी से

दुख में हँस के सहे दिल पे खरोच

जिस पर टिकी हैं जिंदगी

वह बुनियाद है सोच


जिसने बनाया यह घर

वह थवई हैं ईश्वर

चतुर तो देखो कितना हैं

मजबूत बनाया फिर भी नश्वर



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