" नशीली चाँदनी "
" नशीली चाँदनी "
देखो देखो प्रिये
है ये आज की रात कितनी सुहानी
भरा हुआ है अंबर इन जगमग करते
तारों से
वहीं चाँद भी है क्यों मध्यम सा आज
जो बिखरा रहा है शबनम में नहाई हुई
नशीली सी चाँदनी को इस
वसुंधरा पर।
है ये आज की रात कितनी सुहानी सी
ये वादियाँ भी लग रहीं हैं
नशीली सी आज
इस मध्यम सी चाँदनी में
प्रिये आओ चलें उपवन में
डाल हाथों में हाथ इस नशीली रात में
वहीं लेटकर उपवन की नर्म घास पर
गिनेंगे तारे साथ में
इस नशीली सी रात में
प्रिये
है ये आज की रात कितनी सुहानी।