Ajay Amitabh Suman

Abstract

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Ajay Amitabh Suman

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निर्धारण

निर्धारण

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ख़ुदा की जफ़ा को जफ़ा मानते हो,

है उसकी अता ये ना पहचानते हो।


ये उसकी नहीं बन्दे तेरी खता है,

ख़फ़ा है अकारण तुझे भी पता है।


सजा है ये तेरी या तुझ पे भरोसा,

जाने ये कैसे क्या है तू ख़ुदा सा?


क्या पता मालिक की कोई दुआ है,

तू नाहक समझता गलत सा हुआ है।


जब न रहेगा इस जग में अंधेरा,

जाने जग कैसे सूरज का बसेरा।


गर तुझको मोहब्बत है खुद के ख़ुदा से,

तो लानत फिर कैसी शिकायत ख़ुदा से?


है ठीक गलत क्या ये सब जानते हैं,

बामुश्क़िल ही उसको पहचानते हैं।


वो सृष्टि का कर्ता है सृष्टि का कारण,

करे कैसे कोई भी उसका निर्धारण?



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