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RAJESH KUMAR

Tragedy Inspirational

4  

RAJESH KUMAR

Tragedy Inspirational

निर्भया से अंकिता तक

निर्भया से अंकिता तक

2 mins
328


‘निर्भया’ को भूल गए हम

एक होती तो याद भी रहती

रोज़ नई निर्भया मर रही हैं

मगर,शर्म है कि आती नही!

 

अंकिता नई निर्भया हो गई

हम पुत्री सप्ताह मना रहे,

नवरात्रों का आयोजन कर रहे

असल मंतव्य भाव को अस्वीकार कर रहे!

मां बाप भयभीत है, गमगीन है

लड़की का मा-बाप होना,क्या अभिशाप है?

 

लड़को को शिक्षित नही कर पाए

कॉलेज स्कूल बड़े से बड़े हो रहे

फिर ऐसा क्यों घटित हो रहा?

चरित्र कहाँ खो रहा?

 

एक एक होते होते निर्भया की संख्या

बढ़ती ही जाय,,,,

मानसिकता उसके बाद भी अहम की

लड़की के पोशाक व पेशे को दोष देना

वो वहाँ क्यो, कैसे थी उसके लिए प्रश्न छोड़ जाय,,,

 

उसके अस्मिता का चीर-हरण हुआ

कुछ सबूत ना छुटे, मौत के घाट उतार दिया

हम ऐसा समाज बना ही नही बना पाए

जहां लड़कियां एक उपभोग का बिम्ब ना हो

 

नवरात्रि ,तीज त्यौहार पर देते मान

फिर भी अंदर का रावण जिंदा है

अब क्या हम राम के इंताजार मैं हैं

 

प्यार आकर्षक दोस्ती ये माना स्वाभाविक है

लेकिन वासना की बलि चढ़ा देना ,कलंक है

हम भूल जाते है, परिवार में माँ बहन हमारे भी है,

उनके बिना हम कुछ भी नही, कुछ भी नही,,

 

बात एक कृत्य करने वाले की नही

हम सब की जिम्मेदारी की भी है

स्कूल ने कॉलेजों ने समाज ने क्या संस्कार दिए?

सब चरित्र का पाठ देना क्या गये भूल?

 

जेल बेल फाँसी ये सब भी निर्भया

को नही बचा पाए रहे,,,,

चोट जड़ों पर करने की है,,

परिवार में बचपन से प्यार के

साथ लड़कियों के प्रति नजरिया

विकसित करने की है,,

 

डिग्री के साथ छात्राओं के प्रति

व्यवहार कसौटी भी होना चाहिए

अंजाम परिणाम क्या होगा,,

समय से बार बार आगाह करने की है।

तभी तो सभी की बहन बेटी

भी होगी सुरक्षित, आज़ाद,सहभागी

 

ये गलती इतनी बड़ी है, आभास मुश्किल है,,

परिजन गुस्से व पश्चताप में सुलगते हैं,,

हर लड़की की में पनपता ज्वाला है,,

देश समाज की छवि भी करते धूमिल हैं,,

लड़के पुरुष होने का अभिमान भी हमे,,,

इन माँ बहनों से ही तो है,, यूं ना अत्याचार करो

 

यदि चरित्र निर्माण की बात नही हुवा,,

तो सब होगा बार बार,हो कोई भी सरकार,,

बेटों को असल में शिक्षित करने की है जरूरत,,

समाज का आदर्श ताना बाना, रहे बनी

सब की सहभागिता अति जरूरी है।

हां, चरित्र निर्माण बहुत जरूरी है।

 


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