नारी
नारी
कमर कस कर कर लेती है तैयारी,
जब आती है एक नारी की बारी।
एक पड़ाव आता है जीवन में जब,
वह एक बेटी बनकर पलती है।
माता-पिता के धड़कन में वो,
जैसे जान बनकर रहती है।
शादी के बंधन में बंध कर फिर,
तोड़ देती है सब संग और यारी।
कहते हैं त्याग और बलिदान की,
सूरत होती है ये हर नारी।
एहसान तो इतने है क्या कहे,
कोई कभी भी ना चूका पाए।
बहू, बेटी, माँ और बीवी बनकर,
ये अनगिनत के मन को भाए।
ना ही होता है स्वार्थ उसका,
ना लेती हिस्सा ना ही कोई दावेदारी
गिनती नहीं होती है फिर भी,
बस में कर लेती है दुनियादारी।
भेदभाव के किचड़ से निकल कर,
सती, दहेज और कई प्रथा ने मारा है।
ये भी कम नहीं था जो आज,
बलात्कारीयों ने डेरा डाला है।
घर के सारे काम वो करके,
बिजनेस में भी साझा करती है।
आँच आती जब उसके अपनों पर,
तो नहीं कभी भी डरती है।
सब कुछ न्योछावर करती,
बस प्यार के भाव की भूखी है।
याद करो ज़रा बिना नारी के,
किस तरह ये दुनिया रुखी है।
सलाह है कि नारी का सम्मान करो,
नहीं कर सकते गर ऐसा कुछ तो,
कम से कम ना कभी अपमान करो।