नारी व्यथा
नारी व्यथा
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सर्वस्व समर्पण
प्रिय मेरा
क्या नेह सत्य
रसधार नहीं |
बन प्रेममूर्ति
सौरभ अमूर्त
किन्तु हिए
लोकव्यवहार नहीं ।
न्यौछावर चरणों में
तन मन सरबस
क्या नारी का
कोई
अस्तित्व नहीं ।
वेदना ह्रदय को
विदीर्ण करे
क्यों न समझे
पिय भाव मेरे
क्या उर में है
सैलाब नहीं ।
प्रतिपल घुटती
जीवन में रखती
नेत्रपलक में बैठाये
प्रियतम मेरेपूर्ण
ऐसी कोइ आस नहीं ।