नारी के कई रूप
नारी के कई रूप
नारी के कई है रूप,
एक तरफ कोमलता
तो वही है तप्त धूप
कहि छाँव तो कही के कठोरता।।
नारी के है कि रूप
देवत से जाना जिसको
सबने ही पहचाना इसको
कभी बेड़ियो की शोभा थी नारी।
आज समय पर अधिकारी।।
नारी के है कि रूप
कही छाँव तो कही धूप
शृंगार रस तत्व से भरपूर
यौवन मदमस्त निखर निखर
छलक रहा गिर बिखर बिखर।।
लय ताल का न इसको होश
खन खन खनके उर हार माला और
पाँव चमकता नूपुर।।।
कहि श्रद्धा तो कही आत्म घात
कभी खिलते है फूल प्रेम के
कहि मिलता है श्रम सौगात।।
नारी के है कई रूप
कही छाँव तो कहि धूप।।