नारी का सम्मान
नारी का सम्मान
बराबरी का हक़ तुम हमे
भीख में क्या दोगे
पूरी कायनात हमसे
उपजायी है
सागर जैसा शांत मन
किसी भी उछाल से कर सकता जंग ,
मत भूलो तुमने जो
आशा की किरण देखी है
अँधेरे को चीरने के लिए काफी है
हर डगर पर देती वो इम्तेहान
उम्मीद के आखरी छोड़ तक
सहेजती हर तूफ़ान
कभी मुरझाई कभी टूटती
वो तो सिर्फ जोड़ती बांधती
ढकती बुनती और संभालती
हर रिश्ते की गहराई को
आंसुओं को किया उसने दफ़न
कभी धूप दिखा के
कभी टीका लगा के
ख़ुशी की चादर बिछाकर
छांट लेती अपने लिए
बची हुई रोटी सब्जी
बचाती वो हर चीज़ पुरानी
बचपन हो या प्रेमकहानी
सबका मान रखती सेर्वोपरी
ईश्वर कि अनुकम्पा से
वो शशक्त और सम्पूर्ण है
न करो उसके कर्मो का नापतोल
नारी बेजान नहीं अग्निबाण है
बहुत हुआ अपमान
हाथ जोड़ा है पर
कभी मुँह मोड़ा नहीं
समज गए तो संभल जाओ
मत रौंदो तुम करो सम्मान
सबका विकास है सबका अधिकार!