नारी जीवन
नारी जीवन


कर तू गौरव स्वयं पर, सबला है तू अबला नहीं,
रह न तू पाखंड में, अधिकार तुझको मिला नहीं।
तू दया , करुणा अगर है, क्रोध भी ज्वाला भी तू ।
है स्वरूप तू जननी का, विध्वंस का भी प्रतीक तू।
फिर भला संशय क्या तुझको, लड़ रही अस्तित्व को।
क्या नहीं अभिज्ञान तुझको, आशय मिला जो स्त्रीत्व को।
नारी की काया सदा से, देवता भी चाहते,
गर्व कर जीवन पे अपने, हो कठिन जो रास्ते।
तूने सृष्टि के सृजन में भी दिया अभिदान है,
नारी कर न ग्लानि खुद पर, तू सदैव महान है।